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श्रीराम इससे और क्रोधित हो गए. हनुमानजी ने समझा कि स्थिति गंभीर होती जा रही है. उन्होंने काशी नरेश को एक अचूक उपाय बताया.

हनुमानजी ने कहा हर सुबह सीता माता, श्रीराम की पूजा के लिए पुष्प चुनने जाती हैं. उस समय तुम उनके पांव पकड़ लेना और तब तक न छोड़ना जब तक अभयदान न मिल जाए.

काशी नरेश ने वैसा ही किया. चूंकि वह हनुमानजी के साथ आया था इसलिए माता ने नरेश को अभयदान देकर हनुमानजी को उनकी रक्षा आ आदेश दिया.

प्रभु ने दूसरा अभिमंत्रित तीर छोड़ा. वह काशीराज को मारने पहुंचा. हनुमानजी ने कहा कि इसकी हत्या से पहले तुम्हें मेरी हत्या करनी होगी क्योंकि मुझे इसकी सुरक्षा का आदेश मिला है.

तीर वापस हो गया. श्रीराम का क्रोध और बढ़ गया. उनके शत्रु की रक्षा हनुमान कर रहे हैं, यह बात भगवान को अच्छी नहीं लगी.

प्रभु ने दूत भेजकर हनुमानजी को आदेश दिया कि वह उनके शत्रु की रक्षा न करें. हनुमानजी ने कहा कि मैं दो-दो माताओं के शरणागत की रक्षा का आदेश पूरा कर रहा हूं. अब तो प्रभु को अपना वचन पूरा करने के लिए मेरे प्राण लेने होंगे.

भगवान श्रीराम के क्रोध की कोई सीमा न रही. उन्होंने दूत से कहलवाया कि अपना वचन पूरा करने के लिए वह हनुमानजी से युद्ध करने आ रहे हैं, तैयार रहें.

हनुमानजी दुविधा में आ गए. वह प्रभु के पास आए और प्रणामकर उनसे युद्ध में विजय का आशीर्वाद मांगा. प्रभु ने मुस्काते हुए आशीर्वाद दे दिया.
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