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नारद काशीराज को लेकर अंजना माता के पास गए. उनसे कहा आप इसे शरण में ले लें. संकटमोचक हनुमानजी की माता के शरणागत को कोई मार नहीं सकता. अंजना सारी बात जानती न थीं लेकिन नारद की सिफारिश पर उन्होंने शरण दे दी.

उधर श्रीराम ने अपने तरकश से तीर निकाला और उसे आदेश दिया कि ऋषि का अपमान करने वाले का वध कर दो.

अंजना ने शरणागत की रक्षा के लिए पुत्र हनुमान को पुकारा. हनुमानजी भी पूरा मामला नहीं जानते थे. उन्होंने भी माता के शरणागत की रक्षा का वचन दे दिया.

हनुमानजी ने काशी नरेश को रामनाम का अखंड जप करने को कहा. जब प्रभु का तीर उन्हें मारने पहुंचा तो वह राम नाम जप रहे थे. तीर बिना उनका वध किए वापस हो गया.
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