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परशुराम सकुचाते हुये भीतर आये, बैठ गये. पर शंका के भाव उनके चेहरे से अभी गया नहीं था. दत्तात्रेय बोले, जिन चीजों को तुम देख रहे हो परशुराम, इस आश्रम के बहुत से साधु और साधक उसे देखकर आश्रम छोड़ कर कर चले गये. मैंने उन्हें नहीं रोका. उनमें श्रद्धा की घोर कमी थी.

तुम श्रद्धा भाव ले कर आये हो, श्रद्धा का मतलब है कि जिसके प्रति श्रद्धा हो उसके दोष देखने की बुद्धि ही उतपन्न न होने दो. इसलिये तुम इनपर ध्यान न दो. संसार में मुक्ति का रास्ता एक ही है. अपनी इंद्रियों को वश या नियंत्रण में रखना.

यह सब चीजें मैं अपने पास इसलिये रखता हूं कि इनके करीब होने पर भी मैं अपनी इंद्रियों को अपने वश में रख सकूं. इंद्रियों को जीत लिया तो समझो सब जीत लिया. सचाई जानकर परशुराम मुनि दत्तात्रेय के चरणों में गिर पड़े.

दत्तात्रेय ने परशुराम को समझाया कि मां त्रिपुर सुंदरी की आराधना में लग जाओ. वही तुम्हारे सारे मनोरथ पूरे करेंगी. उन्होंने परशुराम को मां त्रिपुर सुंदरी की उपासना की तांत्रिक विधि,रहस्य समझाये, तत्वज्ञान दिया और दीक्षा तथा आशीर्वाद दे कर एकांत साधना के लिये महेंद्र पर्वत पर भेज दिया.

स्रोत : त्रिपुर रहस्य

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