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मर्यादा पुरुषोत्तम की लीला अपरंपार है. उनके द्वारा सीता जी को दान में देने के पीछे भी एक गहरा संदेश छिपा हुआ था जिसको उन्होंने अपनी लीला और गुरु वशिष्ठ मुनि जरिये समाज तक पहुंचाया.

रावण विजय से लौट आने के बाद की बात है. भगवान श्रीराम ने इस बार बहुत विशाल अश्वमेध यज्ञ किया. इस यज्ञ की पूरी धरती पर चर्चा थी. खूब दान बांटा जा रहा था. उत्साहित हो भगवान ने घोषणा की कि, यदि कोई मुझसे कौस्तुभ मणि, कामधेनु, अयोध्या का राज्य, पुष्पक विमान और यहां तक कि सीता जी को भी दान में मांगेगा तो मैं खुशी खुशी दे दूंगा.

इस घोषणा का प्रचार दूर दूर तक हुआ पर किसी में इतनी हिम्मत या सामर्थ्य कहां कि ऐसी वस्तुएं दान में मांगे. कोई सामने न आया. ठीक राम जन्म के दिन यज्ञ सकुशल संपन्न हो गया. देवताओं ने फूल बरसाये तो नगर निवासियों ऋषि मुनियों और भगवान राम का दर्शन सुख लिया.

अब भगवान श्रीराम द्वारा अपने गुरु को दान देने की बारी थी. भगवान श्रीराम ने चिंतामणि और कमधेनु को श्री वशिष्ठ को देने की घोषणा की. पर वशिष्ठ दान लेने के लिये आगे ही नहीं आये. तो श्रीराम द्वारा उनसे दान स्वीकारने की प्रार्थना की गयी.

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