कई लोगों ने भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी सत्यभामाजी की कथा की मांग की है. कुछ दिनों पहले स्यंतक मणि की कथा की भी दो लोगों ने मांग की थी. दोनों का एक दूसरे से संबंध है. इसलिए हम आज वह कथा दे रहे हैं. सत्यभामाजी की कई कथाएं हम आगे भी देंगे.

भारत से बाहर बसे प्रभु शरणम् के प्रेमियों ने भागवत से जुड़े एक प्रसंग के बारे में विस्तार पूछा है. तीन दिन पहले भागवत कथा में मैंने बताया था कि संसार के समस्त जातियों का उदगम कश्यप मुनि व उनकी पत्नियों के गर्भ से हुआ माना जाता है. हमने वह बात भागवत के आधार पर कही थी.

देवों, दानवों, पशु पक्षियों आदि सबके जन्मदाता क्यों कश्यप और उनकी पत्नियों को बताया जाता है, आज शाम हम आपको विस्तार से कश्यप और उनकी संतानों के बारे में बताएंगे. अभी श्रीकृष्ण कथा का रस लीजिए.

सूर्यभक्त सत्राजित द्वारका के बड़े जमींदार थे. सूर्यदेव ने उन्हें स्यमंतक मणि भेंट की थी. उस मणि में सूर्य का तेज था और वह प्रतिदिन आठ भार सोना भी देती थी. इस धन से सत्राजित अभिमानी हो गए थे.वह श्रीकृष्ण से द्वेष रखते थे और प्रभु की बुराई का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. सत्राजित की अत्यंत रूपवती और शस्त्रविद्याओं में कुशल बेटी सत्यभामा बचपन से श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी जो देवी लक्ष्मी का अंशरूप थीं.

सत्राजित ने कृष्ण के मित्र सात्यकि के बेटे से सत्यभामा के विवाह का प्रस्ताव दिया. सात्यकि जानते थे कि सत्यभामा श्रीकृष्ण से प्रेम करती हैं. इसलिए सात्यकि ने प्रस्ताव ठुकरा दिया. इसके बाद सत्राजित का श्रीकृष्ण के प्रति बैर और बढ़ गया. लेकिन श्रीकृष्ण कोई बैर नहीं रखते थे. वह सत्राजित और उनके वैभव की प्रशंसा किया करते थे. इससे सत्राजित को लगता था कि श्रीकृष्ण की नजर उसकी स्यंतक मणि पर है.

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एकबार सत्राजित के भाई प्रसेनजित स्यंतक मणि को धारणकर शिकार खेलने गए. वहां एक शेर उन्हें मारकर खा गया लेकिन मणि उसके गले में ही फंस गई. रीक्षराज जामवंत ने सिंह को मारकर मणि छीन ली और अपने पुत्र को दे दिया. प्रसेन और मणि के गायब होने से सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर स्यमंतक चोरी का आरोप लगा दिया. चोरी का कलंक लगने से क्षुब्ध श्रीकृष्ण कुछ बहादुर लोगों के साथ प्रसेन को खोजने निकले. एक गुफा से निकलती चमक को देखकर उन्होंने साथियों से गुफा के बाहर प्रतीक्षा करने को कहा और खुद अंदर चले गए.

गुफा में जामवंत से उनका युद्ध आरंभ हुआ. जामवंत ब्रह्मा के पुत्र थे और लंका विजय में उन्होंने श्रीराम का साथ दिया था. जामवंत के साथ श्रीकृष्ण का युद्ध 22 दिनों तक चला. जामवंत को आशीर्वाद था कि श्रीकृष्ण के अलावा कोई और उन्हें द्वंद्व में नहीं हरा सकता. उन्हें समझ में आ गया कि स्वयं प्रभु के साथ वह युद्ध कर रहे हैं तो पैरों में गिर गए. उन्होंने श्रीकृष्ण को स्यंतक मणि सौंपते हुए उनसे विनती कि वह उनकी पुत्री जामवंती से विवाह करें. भगवान जामवंती से विवाहकर स्यंतक मणि लेकर द्वारका लौटे और सारी बात महाराजा उग्रसेन जी बताई.

भगवान ने मणि सत्राजित को वापस कर कलंक से मुक्ति पाई. सत्राजित लज्जित हुए. उन्होंने श्रीकृष्ण को स्यतंक मणि दे दी और अपनी पुत्री सत्यभामा का उनसे विवाह कर दिया. सत्यभामा को प्रभु ने पटरानी का दर्जा दिया. जिस दिन सत्राजित ने प्रभु पर आरोप लगाया था वह भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी थी. मान्यता है कि इस दिन चंद्र दर्शन करने से कोई बड़ा कलंक लगता है. उससे मुक्ति के लिए कृष्ण और सत्यभामा के विवाह की कथा जरूर सुननी चाहिए.

संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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