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एक राजा सायंकाल में महल की छतपर टहल रहा था. अचानक उसकी दृष्टि महल के नीचे बाजार में घूमते हुए एक सन्त पर पड़ी. संत तो संत होते हैं, चाहे हाट बाजार में हों या मंदिर में अपनी धुन में खोए चलते हैं.
राजा ने महूसस किया वह संत बाजार में इस प्रकार आनंद में भरे चल रहे हैं जैसे वहां उनके अतिरिक्त और कोई है ही नहीं. न किसी के प्रति कोई राग दिखता है न द्वेष.
मानो उनकी दृष्टिमें संसार है ही नहीं. राजा अच्छे संस्कार वाले और भगवद्भक्त थे. संत की यह मस्ती इतनी भा गई कि तत्काल उनसे मिलने को व्याकुल हो गए.
उन्होंने सेवकों से कहा कि इन संत से मिलने में एक पल की देर भी उन्हें पीडित कर रही है. इन्हें तत्काल लेकर आओ.
सेवकों को कुछ न सूझा तो उन्होंने महल के ऊपर से ऊपरसे ही रस्सा लटका दिया और उन सन्त को उसमें फंसाकर ऊपर खींच लिया.
चंद मिनटों में ही संत राजा के सामने थे.
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