एक आदमी अपनी पत्नी और बेटे के साथ सुखमय जीवन बिता रहा था. धन-दौलत की कमी न थी. इसलिए सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध थीं.
उस व्यक्ति का संसार अपने परिवार तक सीमित था. वह किसी का अहित तो नहीं करता था लेकिन किसी पर उपकार करने में भी उसे यकीन न था.
एक बार उसकी पत्नी बीमार पड़ी. उसने बहुत ईलाज कराया. नामी डॉक्टर आए लेकिन जान नहीं बची. पत्नी की मौत से वह टूट गया.
उसका दायरा पहले से ज्यादा संकुचित हो गया. उसे लगने लगा कि अगर उसकी मृत्यु हो गई तो बेटे का क्या होगा.
यह सोचकर वह बेटे के लिए खूब धन जमा करने लगा. वह वह पहले से भी ज्यादा स्वयं की चिंता करने वाला हो चुका था.
ईश्वर की मर्जी कुछ और थी. एक बार बेटा भी बीमार पड़ा और लाख ईलाज के बाद वह भी नहीं बचा.
अब तो इस व्यक्ति के पास जीने का कोई बहाना ही नहीं बचा था. वह रोज ईश्वर से शिकायत करता कि उसे ऐसा अकेला क्यों कर दिया, वह किसके लिए जिए, किसके लिए कमाए.
अब तो उसने घर से निकलना तक बंद कर दिया. दिनभर रोता रहता, ईश्वर और अपने भाग्य को कोसता रहता.
एक दिन रोते-रोते उसकी आंख लग गई. सपने में स्वर्ग में उसे अपनी पत्नी दिखी. उसने पत्नी को पुकारा लेकिन पत्नी ने अनसुना कर दिया.
वह उसके पीछे भागा और रास्ता रोककर खड़ा हो गया. पत्नी ने पहचानने से मना कर दिया. वह रोने लगा तो पत्नी ने रोने का कारण पूछा.
उसने कहा- मैं तुम्हारे लिए दिनभर रोता रहता हूं लेकिन तुम मुझे पहचानने तक से इंकार कर रही हो.
पत्नी बोली- मरने के बाद भी मैं कई रूपों में तुम्हारे पास आई थी लेकिन तुमने मुझे नहीं पहचाना. मुझे दुत्कार कर भगा दिया.
उसे पत्नी की बात पर बड़ा क्रोध आया. उसने कहा- तुम्हें स्वर्ग के सुख इतने भाग गए हैं कि मुझपर झूठा आरोप लगाकर भाग रही हो.
पत्नी बोली- मैंने ईश्वर से तुमसे मिलने की प्रार्थना की. उन्होंने मेरी आत्मा को थोड़ी देर के लिए किसी न किसी जीव में डालकर भेजा पर तुम पहचान नहीं पाए.
मैं कभी प्यासी गाय तो कभी भूखे बच्चे के रूप में आती थी लेकिन तुमने दुत्कार कर भगा दिया था. इसलिए अब मेरे बारे में सोचना बंद करो.
दुखी मन से वह आगे बढ़ा तो उसे बच्चों के जुलूस में खड़ा अपना बेटा दिखाई दिया.
सभी बच्चों के हाथों में जलते दिए थे सिर्फ उसके बेटे के हाथ का दीपक बुझा हुआ था. उसे ईश्वर की नाइंसाफी पर क्रोध आया.
वह अपने बेटे के पास पहुंचा और बुझे दीपक के बारे में पूछा.
बेटे ने कहा- मैं जब भी दीपक जलाता हूं, मुझे याद करके बहाए आपके आंसू इसे बुझा देते हैं. आपके कारण मृत्यु के बाद भी कष्ट हो रहा है.
इतने में उस व्यक्ति की नींद खुल गई. उसे समझ में आ गया कि ईश्वर ने स्वार्थी होने के कारण इतना कष्ट दिया. उसका स्वार्थ मरने के बाद भी उसके प्रियजनों को दुख दे रहा है.
उस व्यक्ति ने पुत्र के लिए कमाई सारी संपत्ति परमार्थ के कार्य में लगाने का फैसला किया. उसने अनाथ बच्चों को सहारा दिया. इस तरह उसे एक साथ कई पुत्र मिल गए.
ईश्वर आपके प्रियजनों के साथ आपका संबंध एक अवधि के लिए तय करता है. उस समय को बढ़ाने के शायद और तरीके भी हो सकते हैं.
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली