jai shree sita ram

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एक महात्माजी अपने शिष्यों को रामायण, महाभारत, गीता, वेद-पुराण आदि की नीति कथाएं सुनाते और उन्हें इन ग्रंथों के आचरण को अपने निजी जीवन में शामिल करने का आग्रह करते ताकि उनका भविष्य सुखद हो.

महात्माजी जो संदेश देते उसके अनुसार उनका आचरण भी था. संयमित और अनुशासित जीवन, लोभ-मोह से दूर थे किसी भी सांसारिक वस्तु के प्रति कोई आसक्ति नहीं थी.

उनका नियम था कि प्रवचन के बाद यदि किसी शिष्य में मन में कोई शंका है तो उसका निवारण भी शास्त्रसम्मत तरीके से किया करते थे. एक दिन एक शिष्य प्रवचन के बाद उनके पास आया.

उस दिन महात्माजी ने रामायण के बाल कांड का प्रसंग सुनाया था और आदर्श पुरूष की जीवनचर्या पर प्रवचन किया था. व्यक्ति ने पूछा- गुरूजी क्या रामायण के उपदेश सही हैं, या मनगढ़ंत?

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