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देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती को इस बात का थोड़ा अभिमान हो गया कि वे संसार की सबसे पतिव्रता देवियां हैं तभी उन्हें पति के रूप में त्रिलोकेश (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) मिले जिनके दर्शन के लिए सभी देवगण, ऋषि, यक्ष, गंधर्व आदि तरसते हैं. इस अभिमान के कारण देवियों के तेज में कमी आ रही थी. इसलिए प्रभु ने एक लीला रची.
प्रभु ने नारद मुनि के मन में एक प्रेरणा पैदा की. उसके प्रभाव में नारद लक्ष्मी माता के पास पहुँचे. माता ने नारद से काफी दिनों बाद आने का कारण पूछा तो नारदजी को एक अवसर मिल गया आग लगाने का.
नारदजी बोले- मैं महर्षि अत्रि की पत्नी देवी अनुसूयाजी के दर्शन करके आ रहा हूं. तीनों लोकों में अनुसूया के जैसी पतिव्रता स्त्री कोई दूसरी नहीं है. पतिव्रत का प्रभाव ऐसा है कि देवगण भी आकाश मार्ग से गुजरते हुए देवी के दर्शन और आशीर्वाद लिए बिना नहीं जाते.’
नारद ने ऐसी ही बातें माता पार्वती और माता सरस्वती से भी कहीं. तीनों देवियों को बताया कि देवी अनुसूया के आगे उनका पतिव्रत कुछ भी नहीं है. इससे तीनों को अनुसूया से ईर्ष्या होने लगी. उन्होंने त्रिदेवों को हठ करके अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए राजी कर लिया.
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