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उन्होंने भद्रायु को एक शंख तथा एक खड्ग दिया. दोनों ही दिव्य थे जिन्हें सुन और देख कर बैरी भाग जाते. फिर मंत्र पढ कर भद्रायु के शरीर में भस्म लगायी जिससे उसमें बारह हजार हाथियों का बल आ गया.

शिवयोगी ऋषभ के जाने के बाद पता चला कि वज्रबाहु के दुश्मनों ने उनकी सारी रानियों का अपहरण कर लिया और उन्हें कैद. समाचार सुन क्रोधित भद्रायु शेर की तरह गरजा. हालांकि यह उनको अपनी निर्दोष पत्नी और अबोध बालक को व्यर्थ कष्ट पहुंचाने की ही सज़ा थी.

भद्रायु ने अपने पिता के शत्रुओं पर आक्रमण कर उन्हें मार डाला और पिता को छुड़ा लिया. उनको उनका राज्य वापस मिल गया. इस कारनामे से भद्रायु का यश चारों और फैल गया. वज्रबाहु अपने बेटे से मिलकर खुश और पत्नी सुमति से मिल कर बहुत लज्जित हुए.

निषाधराज चित्रांगद और सीमन्तिनी ने अपनी कन्या कीर्तिमालिनी का विवाह भद्रायु के साथ कर दिया. वज्रबाहु ने वीर विद्वान शिव भक्त बेटे के लिये राजगद्दी खाली कर दी. भद्रायु ने हजारों साल राज करते हुए शिव पूजन और महामृत्युंजय का जाप जारी रखा और अंत में शिवस्वरूप होकर शिवलोक को गए. (स्कंद पुराण की कथा)

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश
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तो इस कारण होती है धन की देवी लक्ष्मी के साथ बुद्धि के देवता गणेशजी की भी पूजा

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