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बहुत इलाज कराया पर मां बेटे पर कोई असर न हुआ. रानियों ने राजा के कान भर दिए कि यह एक संक्रामक बीमारी बन सकती है और इससे प्रजा का अहित होगा. इससे पहले कि बात खुले राजा ने सुमति को बच्चे के साथ जंगल में छुड़वा दिया.
रानी सुमति अपने बेटे को लेकर किसी तरह जंगल से बाहर निकली तो उसे एक औरत मिली जो पास के ही शहर के महाजन की दासी थी. वह उसे वहां ले गयी. नगर रक्षक पद्माकर ने वैद्य बुलाए इलाज कराया पर कोई लाभ न हुआ.
सुमति की हालत खराब थी, उसका नवजात बेटा यह रोग न झेल सका और चल बसा. यह देख सुमति बेहोश हो गयी. होश आया तो वह रोते रोते भगवान शिव से प्रार्थना करने लगी कि अब आपके सिवा मेरा कोई नहीं है, साथ ही वह महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगी.
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