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पैशाचिकता आ जाने के उपरांत प्राणी संपूर्ण लोकों में निंदा के योग्य हो जाता है. आप यज्ञ-हवन आदि से वंचित हो चुके हैं. इसलिए हम आपका हवन नहीं करा सकते.
ब्राह्मणों की बात सुनकर सत्यव्रत बहुत दुखी हुआ. उसने सोचा कि अब उसके जीवन का कोई अर्थ ही नहीं क्योंकि यदि यज्ञ-हवन का अधिकार खो चुका है तो वह इस पाप से मुक्ति पा नहीं सकेगा.
पिता ने त्याग दिया है, गुरू ने शाप दे दिया है, पैशाचिक वृतियों से घिरता जा रहा हूं. इसलिए अब मुझे प्राण त्याग देने चाहिए. इस विचार से उसने विशाल चिता तैयार की.
चिंता जलाकर उसने भगवती की स्तुति की और अग्नि में प्रवेश करने के लिए बढ़ा. देवी प्रकट हो गईं. उन्होंने कहा- पुत्र तुम शरीर का त्याग मत करो. मैं तुमसे प्रसन्न हूं. तुम्हारे शाप का निवारण होगा.
तुम्हारे पिता वृद्ध हो चुके हैं. आज से तीसरे दिन तुम्हारे पिता तुम्हें बुलवा लेंगे वे राज्य तुम्हें सौंपकर ब्रह्मलोक चले जाएंगे. सत्यव्रत ने प्रसन्न होकर माता की स्तुति की.
देवी की कृपा से उसी समय नारद मुनि अयोध्या गए और उन्होंने राजा अरूण को सारी बात कह सुनाई. अरूण को ग्लानि हुई और उन्होंने अपने मंत्रियों को राजकुमार सत्यव्रत को लेकर आने का आदेश दिया.
देवी के वरदान अनुसार तीसरे दिन मंत्रिगण आए और उसे सम्मानपूर्वक वापस ले गए. राजा अरूण ने ब्राह्मणों को बुलवाया और स्वयं उस यज्ञ के भागी बनकर राजकुमार का अनुष्ठान पूर्ण कराया.
देवी की कृपा से सत्यव्रत पर शाप का प्रभाव बहुत कम हो गया था. महाराज अरूण ने सत्यव्रत को राजसिंहासन पर बिठाया और वानप्रस्थ के लिए चले गए.
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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