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शिवजी प्रसन्न होकर बोले- तू एक संतान पाने के लिए इतनी कठिन तपस्या कर रहा है, मैं तुझे दस बेटों का वरदान देता हूं. यह कह कर भगवान शिव अंतर्धान हो गए.

समय पाकर इन्दु के दस पुत्र पैदा हुए. उनकी शिक्षा-दीक्षा बस पूरी ही हुई थी कि एक दिन ब्राह्मण इन्दु की मौत हो गई. पुत्रों ने सोचा कोई ऐसा काम करना चाहिए, जिससे हमारे पिता की कीर्ति अमर हो जाये.

सबने सोचा कि आज तक बस प्रजापति ने ही सृष्टि रची है, किसी मनुष्य ने सृष्टि नहीं रची. सो हम दसों को दस ब्रह्म बनकर अपने पिता की याद में दस सृष्टियों की रचना करनी चाहिए. यह कर सकें तो पिता का नाम अमर हो जायेगा.

ऐसा निर्णय करने के बाद वे दसो आपका ही ध्यान करने लगे. आपका ध्यान करते-करते उनका ध्यान पूर्णता को प्राप्त हो गया. उनका संकल्प निष्ठ हो गया तो उनमें भी आप जैसी शक्ति आ गयी. आगे क्या हुआ वह आप देख ही रहे हैं.

इतनी कथा सुनाने के बाद महर्षि वशिष्ठ ने कहा- हे राम! मन्त्र के साथ ध्यान का यही विज्ञान है. मनुष्य पूरे मनोयोग के साथ एकनिष्ठ होकर जिसका भी ध्यान करता है, वह उसकी ही तरह शक्ति संपन्न हो जाता है. इसीलिए आपने कई शिवस्वरूप सुने होंगे.
(स्रोत: वाल्मीकि रामायण)

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

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