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उसे आनंद आ गया. घूमते में यह ध्यान ही नहीं रहा कि वहां बर्फ थी. उस पर चलते रहने से उसके पैरों का सारा लेप ही घुल गया. जब ब्राह्मण को थकान लगी और चाल ढीली पड़ी तो उसे इस बात का अहसास हुआ.
उसे घर लौटने की चिंता सताने लगी. परंतु लेप तो अब घुल गया था. अब वह इतनी दूर वापस कैसे जायेगा. संध्या, पूजन,हवन का क्या होगा? यही सोचता वह ब्राह्मण हिमालय पर चक्कर लगाने लगा.
ऐसे में वरुथिनी नाम की अप्सरा ने उसे देख लिया और पहली हे नजर में उस पर मर मिटी. ब्राह्मण ने वरूथिनी से पूछा- तू कौन है और यहां क्या कर रही है? यहीं की हो तो मुझे यहां से निकलने का कोई रास्ता और उपाय बताओ ताकि मैं घऱ जा सकूं.
जवाब में वरुथनी बोली कि घर जाकर क्या करोगे? मेरा नाम वरूथिनी है. मैं आपको देखते ही आप से प्रेम करने लगी हूं. मेरे साथ रहेंगे तो हर तरह के सुख दूंगी. इस रमणीक क्षेत्र में युवावस्था लंबे समय तक बनी रहती है. देवभूमि में रहकर कुछ दिन विषय भोग का आनंद लीजिए फिर घर भी चले जाइयेगा.
ब्राह्मण ने कहा- मैं ऐसा नहीं कर सकता. मेरे गुरुओं ने कहा है कि पराई स्त्री को छूना भी मत. मैं तो तुझ पर निगाह भी न डालूंगा. वरूथिनी ने कहा कि वह उनके बिना मर जाएगी. पर ब्राह्मणदेव न माने और हाथ में जल ले मंत्र पढने लगे.
ब्राह्मण ने कहा- हे अग्निदेव अगर मैंने दूसरे के धन और पराई स्त्री की इच्छा कभी न की हो और मेरा गृहस्थ व्रत सच्चा है तो मैं सूरज डूबने के पहले ही घर पहुंच जाऊं.
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