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निर्मल मन के हो गए और सबको विष्णुमय ही देखने लगे. एक दिन उन्हें विष्णुलोक की प्राप्ति भी हो गई. फिर भगवान श्रीविष्णु की ही कृपा से वह ब्रह्माजी द्वारा उत्पन्न हुए और तीनों लोकों में हरिगुण गाते घूमते हैं.
लोमशजी ने कहा- तुम्हें नारदजी की कथा सुनाई ताकि तुम सत्संग का महत्व समझ सको. यदि तीर्थों की महिमा बड़ी है तो सत्संग की महिमा अपरंपार है. सत्संग से जन्म भर के पाप उसी तरह से कट जाते हैं जैसे शरद ऋतु में बादल. नारद इसी से दुर्लभ विष्णुलोक को पा गए.
लोमशजी ने आगे कहा- हे वैश्यवर आप सत्संग में आए तो मैं आपको एक लाभ की बात बता दूं. आपने जितने भी पुण्य कार्य और तीर्थ किए, सत्संग लाभ लिया पर यदि आपने वृषोत्सर्ग नहीं किया तो सब व्यर्थ रहा. समय रहते ही वृषोत्सर्ग संपन्न कर लो.
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