हमारा फेसबुक पेज लाईक करें.[sc:fb]
लोमशजी बोले- यह मन बहुत चंचल, विकार वाला और अपने को ही धोखा देने वाला है. आंतरिक और बाह्य पवित्रता के लिए तीर्थ और स्नान से भी आवश्यक बात जो है वह गूढ बात मैं बताता हूं जो नारदजी ने मुझे सुनाई थी.
पूर्वजन्म में नारदजी एक कुलीन ब्राह्मण के दासीपुत्र थे. वहां विद्वान ब्राह्मण और महान पुण्यात्मायें आती रहती थीं. एक बार उनके गृहस्वामी के यहां सिद्ध संतजन कहीं से आकर ठहरे थे. नारदजी को उनके सत्संग का अवसर मिला. उन्होंने संतों की खूब सेवा की.
सेवा से प्रभावित होकर साधुओं ने नारदजी को ज्ञान दिया कि तुम्हें आचारवान योगी बनना चाहिए जिससे तुम सिद्धि प्राप्त कर लोगे. नारदजी संतों के बताए मार्ग पर चलने लगे. उनमें बड़ा परिवर्तन पाया.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.
achi post hi
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
आप नियमित पोस्ट के लिए कृपया प्रभु शरणम् से जुड़ें. ज्यादा सरलता से पोस्ट प्राप्त होंगे और हर अपडेट आपको मिलता रहेगा. हिंदुओं के लिए बहुत उपयोगी है. आप एक बार देखिए तो सही. अच्छा न लगे तो डिलिट कर दीजिएगा. हमें विश्वास है कि यह आपको इतना पसंद आएगा कि आपके जीवन का अंग बन जाएगा. प्रभु शरणम् ऐप्प का लिंक? https://goo.gl/tS7auA