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एक व्यक्ति प्यास से बेचैन भटक रहा था. उसे गंगाजी दिखाई पड़ी. पानी पीने के लिए नदी की ओर तेजी से भागा लेकिन नदी तट पर पहुंचने से पहले ही बेहोश होकर गिर गया.

थोड़ी देर बाद वहां एक संन्यासी पहुंचे. उन्होंने उसके मुंह पर पानी का छींटा मारा तो वह होश में आया. व्यक्ति ने उनके चरण छू लिए और अपने प्राण बचाने के लिए धन्यवाद करने लगा.

संन्यासी ने कहा- बचाने वाला तो भगवान है. मुझमें इतना सामर्थ्य कहां है? शक्ति होती तो मेरे सामने बहुत से लोग मरे मैं उन्हें बचा न लेता. मैं तो सिर्फ बचाने का माध्यम बन गया.

इसके बाद संन्यासी चलने को हुए तो व्यक्ति ने कहा कि मैं भी आपके साथ चलूंगा. संन्यासी ने पूछा- तुम कहां तक चलोगे. व्यक्ति बोला- जहां तक आप जाएंगे. संन्यासी ने कहा मुझे तो खुद पता ही नहीं कि कहां जा रहा हूं और अगला ठिकाना कहां होगा.
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