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गुरूवार 16 दिसंबर की दोपहर से सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के साथ ही खर मास प्रारंभ हो गया. इस पूरे मास में शास्त्रों में क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए इस विषय पर विस्तार से कहा गया है. इस मास को तो शास्त्रों में गर्भाधान से लेकर प्राण त्यागने तक के लिए भी उचित नहीं माना गया है.

भीष्म पितामह ने पूरे एक मास तक अपने शरीर से रक्त के रिसने की पीडा सही लेकिन प्राण नहीं त्यागा. इस मास से जुड़े बहुत सी ऐसी जरूरी बातें बताएंगे जो आपके लिए जानना जरूरी है. फिलहाल यह जानते हैं कि इसका नाम खर मास क्यों हुआ? खर तो गदहे को कहते हैं. फिर वर्ष के इस मास का नाम ऐसा क्यों पड़ा?

इसके पीछे की मार्कंडेय पुराण में एक कथा आती है. सूर्यदेव अपने सात घोड़ों के रथ में बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं. भगवान सूर्य का रथ कहीं भी एक क्षण को रूकता नहीं है लेकिन सूर्यदेव के सातों घोड़े सारे साल भर दौड़ लगाते-लगाते प्यास से तड़पने लगे.

भगवान को अपने घोड़ों की दयनीय स्थिति देखकर सूर्यदेव को दया आई. उन्होंने इसका रास्ता निकालने की सोची. उन्होंने सारथी अरूण से कहा कि एक तालाब के निकट कुछ समय के लिए रूक जाओ ताकि सातों घोड़े पानी पी सकें.

यह आदेश देने के साथ ही उन्हें यह प्रतिज्ञा याद आई कि घोड़े बेशक प्यासे रह जाएं लेकिन उनकी यात्रा में विराम नहीं लेना है. अगर उन्होंने विराम लिया तो सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा.
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