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एक बार राजा शतानीक ने महामुनि सुमंतु से पूछा– हे मुने! गणेशजी ने किसके लिये विघ्न उत्पन्न किया था, जिसके कारण उन्हें विघ्न विनायक कहा गया? आप विघ्नेश तथा उनके द्वारा विघ्न उत्पन्न करने के कारण मुझे बताने का कष्ट करें.
सुमन्तु मुनि बोले– राजन! एक बार कुमार कार्तिकेय लक्षण शास्त्र की रचना में तल्लीन थे. शास्त्र में पुरुषो और स्त्रियों के श्रेष्ठ लक्षणों के बारे में वह विस्तार से वर्णन जैसे जटिल कार्य में मनोयोग से जुटे थे.
यह कार्य इतना विशद और गंभीर था इस कारण कार्तिकेय उलझे थे. उसी समय वहां श्रीगणेशजी पहुंचे और वह कार्तिकेय के कार्य में विघ्न डालने लगे.
कुमार कार्तिकेय ने जो कार्य आरंभ किया था उसको लेकर उनमें गर्व का भाव आ गया था. इस अद्भुत कार्य में पड़े विघ्न को वह सह नहीं पाए और क्रोध में छोटे भाई पर प्रहार कर दिया.
क्रोधित कार्तिकेय ने झपटा मारा जिससे गणेशजी का एक दांत उखड़ गया. कार्तिकेय का क्रोध इतने में ही नहीं थमा. वह गणेशजी को मारने दौड़े. तभी भगवान शंकर आ गए उन्होंने पूछा कि कार्तिकेय तुम्हारे इस अतिशय क्रोध का क्या कारण है?
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