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पिछली कथा से आगे…
कथा सुनने के बाद पृथु बोले- हे मुनि आपने कार्तिक के महाफल का सुंदर वर्णन किया है. अब स्नान की विधि और इसके नियम भी कहिए. यह सुनकर नारदजी प्रसन्न हुए.
नारदजी बोले- हे राजन, आप श्रीविष्णु के अंश से उत्पन्न हुए हैं, आपसे कोई बात छुपी नहीं है. फिर भी आपने पूछा तो मैं आपके समक्ष नियमों का वर्णन करता हूं. आश्विन मास में शुक्लपक्ष की एकादशी से सावधान होकर कार्तिक के व्रतों को प्रारंभ करें.
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