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एक दुविधा अक्सर होती है लोगों में कि एक ही माता-पिता की दो संतानें स्वभाव से, कर्म से और विचार से एकदम उलट क्यों हो जाती हैं? इसका उत्तर भागवत महापुराण से समझने का प्रयास करना चाहिए.

देवताओं की माता अदिति और दैत्यों की माता दिति सगी बहनें थीं. देवता और दैत्य दोनों ही प्रजापति कश्यप के अंश से जन्मे पर दोनों के स्वभाव एकदम उलट.

शास्त्रों में संतान प्राप्ति की प्रक्रिया को संतान यज्ञ कहा गया है. इस यज्ञ की आहूति होती है पति-पत्नी का शारीरिक मिलन परंतु उसके विधान भी कहे गए हैं. प्रजापति कश्यप की एक पत्नी अदिति इसे मानती थीं जबकि अदिति ने द्वेष में भरकर आनंद की कामना से भोग किया.

आपको जो कथा सुनाने जा रहा हूं उसे सिर्फ एक कथा नहीं समझें. हर गृहस्थ के लिए इसमें एक बड़ा रहस्य छुपा है.

संतान उत्पत्ति जीवन का अनिवार्य संस्कार है किंतु उसकी भावना कैसी है यह बहुत मायने रखती है. वासना और आनंद के लिए हुए भोग के परिणाम से उत्पन्न संतान की दशा वही होती है जो दिति के पुत्रों हिरण्यकश्यपु और हिरण्याक्ष के साथ हुआ.

दिति ने पूजा की तैयारी कर रहे पति को बलपूर्वक संभोग के लिए विवश किया था. इसका दुष्परिणाम था यह. आइए सुनते हैं वह कथा कि कामभावना से पीडित होकर दिति ने क्या अनर्थ किया था?

प्रदोष काल में क्यों नहीं करना चाहिए संभोग? उससे जन्मी संतानें कैसी हो जाती हैं?

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