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इंद्र का अभिमान नारद को खटक गया. नारद शनि लोक गए. इंद्र से अपना पूरा वार्तालाप सुना दिया. शनिदेव को भी इंद्र का अहंकार चुभा.
शनि और इंद्र का आमना−सामना हो गया. शनि तो नम्रता से इंद्र से मिले, मगर इंद्र अपने ही अहंकार में चूर रहते थे.
इंद्र को नारद की याद आई तो अहंकार जाग उठा. शनि से बोले- सुना है आप किसी का कुछ भी अहित कर सकते हैं. लेकिन मैं आपसे नहीं डरता. मेरा आप कुछ नहीं बिगाड़ सकते.’
शनि को इंद्र की बातचीत का ढंग खटका. शनि ने कहा- मैंने कभी श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश नहीं की है, फिर भी समय आने पर देखा जाएगा कि कौन कितने पानी में है.
इंद्र तैश में आ गए- अभी दिखाइए! मैं आपका सामर्थ्य देखना चाहता हूँ. देवराज इंद्र पर आपका असर नहीं होगा.’
शनि को भी क्रोध आया. वह बोले- आप अहंकार में चूर हैं. कल आपको मेरा भय सताएगा. आप खाना पीना तक भूल जाएंगे. कल मुझसे बचकर रहें.
उस रात इंद्र को भयानक स्वप्न दिखाई दिया. विकराल दैत्य उन्हें निगल रहा था. उन्हें लगा यह शनि की करतूत है. वह आज मुझे चोट पहुँचाने की चेष्टा कर सकता है. क्यों न ऐसी जगह छिप जाऊं जहाँ शनि मुझे ढूँढ़ ही न सके.
इंद्र ने भिखारी का वेश बनाया और निकल गए. किसी को भनक भी न पड़ने दी. इंद्राणी को भी कुछ नहीं बताया. इंद्र को शंका भी होने लगी कि उनसे नाराज रहने वाले देवता कहीं शनि की सहायता न करने लगें. वह तरह-तरह के विचारों से बेचैन रहे.
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