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इस आदेश के पीछे एक रहस्य था. इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए श्रीहरि ने इंद्र को उसी महर्षि दधीचि के पास भेजा जिनकी हत्या का इंद्र ने कभी प्रयास किया था.
एक बार महर्षि दधीचि ने बड़ा ही कठोर तप आरंभ किया. उनकी अपूर्व तपस्या के तेज से तीनों लोक प्रकाशित हो गए. इन्द्र का सिंहासन तक डोलने लगा.
इन्द्र को लगा कि दधीचि अपने कठोर तप से इन्द्र का पद प्राप्त करना चाहते हैं. इसलिये उन्होंने महर्षि की तपस्या को भंग करने का षडयंत्र रचा.
इंद्र ने स्वर्ग की अप्सरा अलम्बुषा के साथ कामदेव को दधीचि का व्रत भंग करने के लिए भेजा. अलम्बुषा और कामदेव ने खूब प्रयास किया लेकिन ऋषि अडिग रहे.
दोनों ने हार मान ली और स्वर्ग लौट आए. कामदेव और अप्सरा के निष्फल होने से इन्द्र का भय और बढ़ गया और उन्होंने महर्षि की हत्या करने का निश्चय किया.
इंद्र देवसेना लेकर दधीचि के आश्रम पर चढ़ आए. समाधि में लीन महर्षि पर कठोर-अस्त्र-शस्त्रों से प्रहार करना शुरू कर दिया लेकिन महर्षि का कोई अहित न कर सके.
इंद्र ने समझ लिया कि दधीचि का सामना करने उनके बस के बाहर की बात है और वह स्वर्ग लौट गए. दधीचि ने इंद्र को ऐसे बर्ताव पर भी कुछ नहीं कहा था.
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