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इंद्र द्वारा अपने पुत्र विश्वरूप का वध करने से क्रोधित त्वष्टा ने इंद्र को यज्ञकुंड में भस्म करने के लिए आहुति डालनी शुरू की लेकिन क्रोध से तमतमाते त्वष्टा से मंत्रोच्चार में अशुद्धि हो गई.
यज्ञ कुंड से एक भयानक असुर वृटासुर प्रकट हुआ. त्वष्टा ने उसे इंद्र का वध करने का आदेश दिया. वृटासुर इतना भयंकर था कि उसे देखकर देवता जान बचाकर भागने लगे.
जो भी देव वृटासुर के सामने पड़ता वह उसे लील जाता. इंद्र ने उस पर वज्र चलाया तो वृटासुर ने पलटकर जोरदार आघात किया और इंद्र का वज्र ही टूट गया.
इंद्र के साथ-साथ देवता जान बचाने भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे. श्रीहरि ने यज्ञस्थल पर अपने पुरोहित की हत्या करने के लिए इंद्र को जमकर खरी-खोटी सुनाई.
इंद्र ने क्षमा मांगी. देवताओं द्वारा बार प्रार्थना करने पर श्रीहरि ने इंद्र से कहा- यदि तुम्हें अपनी और देवों की रक्षा करनी है तो अथर्व पुत्र दधीचि से सहायता मांगो.
घोर तप के कारण दधीचि की अस्थियां वज्र के समान कठोर हो चुकी हैं. उनकी अस्थियों से फिर से व्रज बनाना होगा और वृतासुर से युद्ध करना होगा.
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