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यात्रा सभी को करनी होती है. शास्त्रों में यात्रा के दो प्रकार कहे गए हैं. सामान्य यात्रा एवं विजयपरक यात्रा. आम लोग अपने छोटे-बड़े उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जो यात्रा करते हैं उसे सामान्य यात्रा कहा जाता है.
राजा या सत्ताधारी लोग किसी विशेष उद्देश्य से एक स्थान से दूसरे स्थान तक जो यात्रा करते हैं उसे विजयपरक यात्रा कहा गया है.
कभी-कभी यात्रा सुखमय बहुत होती है. मन प्रसन्न हो जाता है तो कभी-कभी कोई यात्रा इतनी कष्टदायक हो जाती है कि उसके बारे में या करके तनाव होने लगता है. आखिर ऐसा क्यों?
ज्योतिषशास्त्र में इस विषय में बहुत कुछ गया है. कुछ दिनों पहले मैंने प्रभु शरणम् में यात्रा संबंधी शकुन-अपशकुन पर शास्त्रों का मत रखा था जिसे आपने पसंद किया. आज उसी बात को और आगे बढ़ाता हूं.
आज आपके लिए प्रभु शरणम् में दिशाशूल या दिकशूल का प्रसंग है. दिशाशूल यानी किस दिन किस दिशा की यात्रा करने से बचना चाहिए. यदि यात्रा टाली नहीं जा सकती तो कुछ सामान्य उपाय भी बताए गए हैं जिसे करके यात्रा की जा सकती है.
यदि दिकशूल में भी यात्रा करनी बहुत आवश्यक हो तो एक आम टोटका है कि लोग अपना कोई वस्त्र या एक बैग आदि यात्रा से एक दिन पूर्व किसी पड़ोसी के घर रख देते हैं.
यात्रा पर निकलते समय उस कपड़े को ले लेते हैं. इससे यात्रा को एक दिन पूर्व आरंभ मान लिया जाता है. दिकशूल की यात्रा में जो उपाय कहे गए हैं उन्हें कर लेना चाहिए साथ ही अपने इष्ट देवता, कुल देवता और गुरू का स्मरण-पूजन कर लेने से यात्रा विघ्नों का नाश होता है.
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