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अपनी उपेक्षा देख वे साधु पर भड़क उठे और उसे बुरा भला कहने लगे. साधु सब सुनता रहा पर बोला कुछ नहीं.

परशुराम को लगा हो न हो यह कोई बहुत पहुंचा हुआ तपस्वी है इसलिये हाथ जोड़ कर अपना पूरा परिचय देने के बाद बोले, मुनिवर स्वभाववश मैंने कुछ गलत कह दिया हो तो मेरी गलती क्षमा करें और मुझे कोई बेहतर गुरु मिल सके ऐसा रास्ता दिखाइये.

साधु बोला, मैं देवगुरु वृहस्पति का भाई संवर्त हूं, लगातार तपस्या में लगे रहने के चलते नहीं चाहता कि कोई मेरा ध्यान भटकाये सो इस तरह पागल सा बना रहता हूं. फिलहाल मेरे पास तुम्हें ज्ञान उपदेश देने का समय नहीं है. तुम गंधमादन पर्वत पर दत्तात्रेय के पास जाओ.

परशुराम गंधमादन की ओर चल पड़े. उन्हें पता चला कि दत्तात्रेय मां त्रिपुर सुंदरी के साधक हैं. उन्होंने सोचा मां त्रिपुर सुंदरी तंत्र और शक्ति की देवी हैं, मैं शक्ति साधक रहा हूं मुझे दत्तात्रेय से दीक्षा लेना बहुत बढिया रहेगा.

गंधमादन पर दत्तात्रेय मुनि का आश्रम बहुत विशाल और सुंदर था. परशुराम आश्रम पहुंचकर दत्तात्रेय मुनि की कुटिया के भीतर चले गये. वहां परशुराम ने देखा कि मुनि एक बेहद सुंदर युवती के साथ बैठे हैं और सामने ही मदिरा भरा बड़ा सा पात्र रखा है.

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3 COMMENTS

    • अभी यह आईफोन के लिए नहीं है. जल्द ही उपलब्ध होगा. क्षमाप्रार्थी हैं.

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