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उन्होंने एक और शाप दिया कि भगवान ने चूंकि किसी मानव के दांपत्य जीवन को नष्ट किया है इसलिए उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में जीवन लेना पड़ेगा और पत्नी विरह का कष्ट भी भोगना पड़ेगा. भगवान ने शाप स्वीकार लिया.
उन्होंने ख्याति को फिर से जीवित कर दिया. ख्याति से श्रीहरि ने कहा कि आपने असुरों को जीवनदान देने का वरदान अपने पूर्वजन्म में दिया था. लेकिन मैंने आपको फिर से जीवन दिया इसलिए अब आप पूर्वजन्म के वचन निभाने को बाध्य नहीं हैं.
भृगु को अफसोस हुआ कि पत्नी शोक में वह इतने व्याकुल थे कि प्रभु की माया नहीं समझ पाए.
भृगु के शाप के कारण श्रीहरि को बार-बार अवतार लेकर मृत्युलोक यानी पृथ्वीलोक आना पड़ा, जिसमें से कई अवतार में उन्हें पत्नी वियोग भी झेलना पड़ा. ख्याति के गर्भ में उस समय शुक्राचार्य स्थित थे.
माता की हत्या का प्रयास करने वाले श्रीविष्णु को उन्होंने शत्रु मान लिया और प्रण किया कि देवताओं से इसका बदला लेंगे. इसीलिए शुक्राचार्य असुरों के गुरू बन गए. (यह पद्म पुराण की कथा है. अन्य पुराणों में भी यह कथा है. बहुत मामूली अंतर के साथ)
संकलन व संपादन: राजन प्रकाश
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आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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प्रियवर बंधु
आपकी कथा विचार करने योग्य है। परंतु आपने गलत ज्ञान दिया है।
विष्णु जी को ही बार बार अवतार इसलिए लेना पड़ता है क्योंकि वो सृष्टि के पालनहार हैं।
और जब मनुष्य जाती पर कोई संकट आता है तब पालनहार होने की वजह से उन्हें ही अवतार लेना पड़ता है।
अच्छा चलो आपकी बात मन भी लें तो इसका कोई सबूत है मतलब ये कथा किस पुराण या वेद में लिखा है। या ऐसे ही कोई कहानी बना दी।
कृपया उत्तर अवश्य दें।
यह कथा पुराण आधारित ही है.