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परशुरामजी ने हैहयवंशी क्षत्रियों का वध क्यों किया यह कथा सर्वविदित है. आज मैं आपको श्रीपरशुरामजी की कुछ ऐसी कथाएं सुनाता हूं जो आपने शायद न सुनी हैं.

श्रीपरशुरामजी की कथा की शृंखला प्रभु शरणम् एप्प में चली थी जिसमें 15 भाग में हमने उनकी संक्षिप्त जीवनी, साधना और युद्धों का वर्णन किया था. उस शृंखला के पोस्ट में से ही ही एक कथा लेकर आए हैं. आप प्रभु शरणम् एप्प डाउनलोड कर लें. हम जल्द ही परशुरामजी की कथा शृंखला पुनः प्रकाशित करेंगे.

समंतपंचका में परशुरामजी ने अंतिम युद्ध लड़ा. यहीं पर हजारों क्षत्रपों की बलि दी और उनके खून से पांच तालाब भरे. यह सब करने के बाद उन्होंने अपना रक्तरंजित परशु धोया एवं शस्त्र नीचे रखे था. संहार और हिंसा से वे थक गये थे.

परशुरामजी ने 21 बार अभियान चला कर धरती के अधिकांश राजाओं को जीत लिया था. बहुत से भयभीत होकर उनके शरणागत थे. कुछ ने रनिवासों में छुपकर जान बचाई. कुछ ने ब्राह्मणों के घरों में आश्रय लिया और छुपकर रहे.

हैहयवंशीय वीतिहोत्र ने रनिवास में घुसकर जान बचाई थी. उसके वंश के कुछ पुरुष दधीचि के आश्रम में छिप गए. इस तरह उनकी जान बच पाई. पर अब ये भगोड़े क्षत्रप न रह गये थे.

पृथ्वी के सातों द्वीपों पर अब परशुराम का एकछत्र राज था. एक तरह से पृथ्वी क्षत्रपों से खाली हो गई थी. परशुराम के सभी उद्देश्य पूरे हो चुके थे. भूमंडल पर राज्यों को जीतने के कारण उन्हें अश्वमेध यज्ञ का अधिकार प्राप्त हुआ.

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3 COMMENTS

    • अभी यह आईफोन के लिए नहीं है. जल्द ही उपलब्ध होगा. क्षमाप्रार्थी हैं.

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