जीवहत्या, क्या मूल हिंदूग्रंथों में थी? या बाद में कहीं से ठूंस दिया गया? आप मांसाहारी हों या नहींं, लेकिन इसे पढें जरूर. शाकाहारी हों या मांसाहारी आप इस कथा को जीवनभर नहीं भूल पाएंगे.
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लोग प्रश्न करते हैं कि जीवों को मारकर खाने में क्या हर्ज है? मांसाहार से तो वे एक प्रकार से जीवों को जीवबंधन से मुक्त ही करा रहे हैं. फिर क्यों मांसाहार से मना किया जाता है! मांसाहारी होने को क्यों नहीं सही माना जाता?
कुतर्की तरह-तरह की बातें शुरू करेंगे. कुछ कहेंगे नीच योनि से जीव को मुक्ति दिलाने का पुण्य कर रहे हैं. फिर इसपर पाबंदी क्यों, इसे तो प्रोत्साहित करना चाहिए? शास्त्रों में भी जीवहत्या की बात है. राजागण शिकार करते थे. ऐसे तमाम तर्क दिए जाते हैं.
आज मैं इस अंतहीन विषय पर पहले कोई राय न देकर एक छोटी सी कथा सुनाता हूं. इससे प्रश्न का उत्तर मिल जाए तो भी ठीक, न मिले तो भी ठीक. पर गौर से पढेंगे तो मांसाहार के विषय में कुछ उत्तर तो मिलेगा जरूर.
पुराने समय की बात है. मगध में एक बार खाद्यान्न संकट खड़ा हो गया. मौसम ने साथ न दिया तो अऩ्न का उत्पादन कुछ कम रहा. राजा को चिंता हुई कि यदि इस समस्या का शीघ्र निदान न किया गया तो संरक्षित अन्नकोष खत्म हो जाएगा और संकट भीषण हो जाएगा.
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सम्राट श्रेणिक ने अपनी राजसभा में पूछा- देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है?
मंत्रिगण सोच में पड़ गए. चावल, गेहूं, आदि पदार्थ को उगाने के लिए बहुत श्रम करना होता है. वह तभी प्राप्त होते हैं जब प्रकृति का प्रकोप न हो. ऐसे में अन्न तो सस्ता हो नहीं सकता.
तभी शिकार का शौक रखने वाले एक मंत्री ने सोचा यही सही अवसर है. क्यों न अंधाधुंध शिकार के लिए राजा की आज्ञा ले ली जाए. उसने कहा- सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ तो मांस है. इसके लिए धन का खर्च भी नहीं और पौष्टिक खाना मिल जाता है.
सभी सामंतों ने इस बात का समर्थन कर दिया. लेकिन मगध के प्रधानमंत्री अभय चुप रहे.
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सम्राट ने पूछा- प्रधानमंत्री आप चुप क्यों हैं? आपने इसका अनुमोदन नहीं किया. आपका क्या मत है?
प्रधानमंत्री ने कहा- मैं यह नहीं मानता कि यह कथन कि मांस सबसे सस्ता है पदार्थ है. फिर भी इस विषय पर अपने विचार आपके समक्ष कल रखूंगा.
प्रधानमंत्री अभय उसी रात मांसाहार का प्रस्ताव रखने वाले सामंत के घर पहुंचे. सामंत ने इतनी देर रात प्रधानमंत्री को अपने घर में आया देखा तो घबरा गया. किसी अनिष्ट की आशंका से कांप गया.
प्रधानमंत्री ने कहा- संध्या को महाराज बीमार हो गए. उनकी हालत बहुत खराब है. राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े और प्रभावशाली आदमी के हृदय का दो तोला मांस यदि मिल जाय तो राजा के प्राण बच सकते हैं. आप महाराज के विश्वासपात्र सामन्त हैं. इसलिए आपसे योग्य कौन होगा! इसके लिए आप जो भी मूल्य लेना चाहें, ले सकते हैं. कहें तो मैं आपको एक लाख स्वर्ण मुद्राएं दे सकता हूं, अथवा बड़ी जागीर. अपनी इच्छा कहें. मैं कटार से आपका हृदय चीरकर सिर्फ दो तोला मांस निकालूंगा.
सामन्त के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. वह सोचने लगा कि जब जीवन ही नहीं रहेगा, तब लाख स्वर्ण मुद्राएं और बड़ी जागीर किस काम आएंगी! झटपट अंदर भागा और अपनी तिजोरी से एक लाख स्वर्ण मुद्राएं लेकर आया.
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मुद्राएं देकर उसने उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ लिए. गिड़गिड़ाते हुए बोला- श्रीमंत मैं आपकी एक लाख स्वर्ण मुद्राओं में अपनी एक लाख मुद्राएं मिलाता हूं. इस पैसे से आप किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें किंतु मुझे जाने दें. यह बात किसी को पता न चले.
प्रधानमंत्री अभय तो सब समझ ही चुके थे, पर उसे थोड़ा और मानसिक पीड़ा देना चाहते थे.
प्रधानमंत्री ने आगे कहा- सामंत आप शरीर से बलिष्ठ हैं. आपकी कदकाठी महाराज से मिलती-जुलती है. इसलिए राजवैद्य ने खासतौर से आपका ही नाम लिया है. आपके दान से हमारे अच्छे राजा का जीवन बच सकता है. आप कहें तो मैं आपके लिए प्रधानमंत्री का पद देने को तैयार हूं. खुद आपका कर्मचारी बनकर रहूंगा. पर प्रजा से राजा न छीनें.
सामंत तो फंसता हुआ दिख रहा था. उसने शरीर पर अंगवस्त्र रखा. अपने जूते भी पहन लिए जैसे वह वहां से बस भागने ही वाला है. सामंत अभय के पैरों में लोट गया.
उसने याचना की- प्रधानमंत्रीजी मैं इस योग्य नहीं. और जब प्राण ही न रहेंगे तो फिर प्रधानमंत्री पद क्या, राजा का सिंहासन भी मिले तो क्या करूंगा. आप चाहें तो मेरा सर्वस्व ले लें, पर मेरे प्राण न लें. मैं अपना भवन, अपना धन सब आपको सौंपता हूं. रातों-रात राज्य से निकल जाऊंगा.
इतना कहकर वह अपने घुड़साल की ओर भागा और अपना घोड़ा गांठने लगा. अभय भी पीछे-पीछे गए. वह बोले- तुम अपना परिवार भी छोड़े जा रहे हो?
सामंत बोला- श्रीमंत अपने प्राण से प्रिय कुछ नहीं होते. जीवन ही न रहेगा तो कुटुंब का क्या करूंगा? जीवन रहा तो ही सुख है.
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इतना कहकर उसने छलांग लगाई और घोड़े पर बैठ भी गया.
बस चलने को ही था कि अभय ने घोड़े की रास पकड़ ली. वह सामंत से बोले- भागने की जरूरत नहीं है. आराम से रहो. मैं किसी और से प्रयास करता हूं. यह कहकर प्रधानमंत्री अभय वहां से चले गए. सामंत के जान में जान तो कुछ आई लेकिन मन में बेचैनी बनी रही. उसकी नींद गायब हो चुकी थी.
मुद्राएं लेकर प्रधानमंत्री बारी-बारी से सभी सामन्तों के द्वार पर पहुंचे. सबसे राजा के लिए हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ. सबने अपने बचाव के लिए प्रधानमंत्री को लाख, दो लाख और पांच लाख स्वर्ण मुद्राएं दे दीं.
इस प्रकार एक रात में प्रधानमंत्री ने एक करोड़ से स्वर्ण मुद्राएं जुटा लीं. फिर सुबह होने से पहले अपने महल पहुंच गए. अगले दिन राजसभा के लिए सभी सामंत समय से पहले पहुंच गए. सभी यह जानना चाहते थे कि राजा स्वस्थ तो हैं? कोई किसी से भेद न खोलता था.
सबको राजवैद्य की तलाश थी. उनसे ही कुछ सूचना मिल सकती थी. प्रधानमंत्री ने सैनिकों को आज्ञा दे रखी थी, जब तक महाराज राजसभा में न आ जाएं किसी सामंत को महल में न आने दिया जाए.
राजा, सभा के लिए अपनी चिर-परिचित गति से आए. उसी शान में आकर सिंहासन पर बैठे. सभी सामंतों ने देखा. कहीं से फिर उन्हें राजा अस्वस्थ न दिखे. उन्हें तो कुछ हुआ ही न था. प्रधानमंत्री ने उनसे झूठ बोला. हर सभासद के मन में यही प्रश्न चल रहा था पर कोई किसी और से कुछ बोलता न था.
तभी प्रधानमंत्री अभय ने राजा के समक्ष एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं रख दीं.
राजा ने पूछा- ये मुद्राएं किसलिए हैं, कहां से आईं?
प्रधानमंत्री ने सारा हाल विस्तार से कह सुनाया. दो तोला मांस के लिए इतनी धनराशि इक्कट्ठी हो गई पर मांस न मिला. अपनी जान बचाने के लिए सामन्तों ने ये मुद्राएं दी हैं. अब आप विचारें कि मांस कितना सस्ता है?
राजा को बात समझ में आ गई. उन्होंने प्रजा को कृषि कार्य के लिए अतिरिक्त परिश्रम का आदेश दिया. राज्य के अन्न भंडार से अन्न निकालकर श्रमिकों को दिया गया. उन्हें पौष्टिक सब्जियों की तुरंत खेती का आदेश दिया गया. एक करोड़ मुद्राएं कृषिकार्य में लगे श्रमिकों के कल्याण पर खर्च की गई.
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मेहनत रंग लाई. ऐसी शाक-सब्जियां तेजी से उगा ली गईं जिनसे प्रजा की अन्न पर से निर्भरता भी कम हुई. और वे पौष्टिक भी थीं. कुछ समय बाद मौसम अनुकूल हुआ तो अन्न भी उपजा. इस प्रकार खाद्यान्न का संकट टल गया.
मित्रों, जीवन का मूल्य अनन्त है. हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी होती है, उसी तरह सभी जीवों को अपनी जान प्यारी होती है. अपने दिल से जानिए पराए दिल का हाल. यदि संसार के बंधनों से मुक्त कराने का तर्क सही है तो फिर किसी आततायी द्वारा नरसंहार को भी आप सही मान लेंगे. वह भी तर्क दे सकता है कि वह तो लोगों को कष्टदायक जीवन से मुक्ति दिला रहा है.
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हर जीव अंतिम समय तक प्राण बचाने के लिए संघर्ष करता है. जो असहाय हो जाता है उसे प्राण गंवाने पड़ते हैं. जिन जीवों को हम मार रहे हैं उन्हें तो प्राणरक्षा के संघर्ष का अवसर तक नहीं दिया जाता. बर्बरता सिर्फ वही नहीं है जहां मानव का रक्त बहे. बर्बरता उन सभी कार्यो में है जहां-जहां रक्त बहे.
परंपरा है न कि अंतिम सांसे गिन रहे जीव से आशीर्वाद लिया जाता है. कहते हैं उस समय वह देवत्व के निकट होता है. हम ऐसा ही करते हैं न! जिस जीव को खाने के लिए मार रहे होते हैं वह अंतिम समय में आपको शाप देता हुआ ही जाता है. सोचिए अंजाने में कितना बड़ा पाप हो रहा है.
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-राजन प्रकाश
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I like it…..aapki katha bahut aachi lagi mujhe…….xXx
I very very like
stady
Shi h
God is great
Very nice
Jai Ho baba
right
Bhut achhi kahani h hart me changes huaa
Best story Hindu Bhagvan ki
Jay Jalaram Bapa
BAHUT HI GYAN VARDAK STORI HAI HER INSAN KO ES SE SEEKH LENI CHAIYE
bahut hi achchistori hai
JAI HO SANATAN DHARM KI.
MAI SIRF ITNA JANTA HU KI APKI KATHA HAME ANDHKAR SE PRAKASH KI OR LEJATI HAI. PLS CONTINUE.
JAI SHREE KRISHNA.
आपकी ये शाकाहार और मांसाहार की कहानी सच में बहुत ही प्रेरणादायक है, अगर कोई इस बात को समझ जाएं सच्चे दिल से तो जरूर इस कहानी की बातों से सहमत होगा और उसे करेगा भी ।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ऐसे विचार प्रसारित करने के लिए
आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस कहानी को पोस्ट करने के लिए